Kavita Mein | Amita Prajapati
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कविता में | अमिता प्रजापति
कितना कुछ कह लेते हैं
कविता में
सोच लेते हैं कितना कुछ
प्रतीकों के गुलदस्तों में
सजा लेते हैं विचारों के फूल
कविता को बाँध कर स्केटर्स की तरह
बह लेते हैं हम अपने समय से आगे
वे जो रह गए हैं समय से पीछे
उनका हाथ थाम
साथ हो लेती है कविता
ज़िन्दगी जब बिखरती है माला के दानों-सी फ़र्श पर
कविता हो जाती है काग़ज़ का टुकड़ा
सम्भाल लेती है बिखरे दानों को
दुख और उदासी को हटा देती है
नींद की तरह
ताज़े और ठंडे पानी की तरह
हो जाती है कविता
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